Jazbaat-E-Shayar
Jazbaat-E-Shayar
जींदगी महज यादों की कहानी थी,
हाँ, वही-वही मेरी जींदगानी थी,
कलम भी वही थी और वही किताब थी,
मे कहानी और मेरी वो जुबानी थी,
में हिंदु था और थी वो मुसलमान,
में प्रार्थना और वो नमाज़ की दिवानी थी,
मेरा ठिकाना मंदिर ओर था उसका मस्जिद,
मुजे मंत्र ओर अज़ान उसको प्यारी थी,
में कोरा कागज़ था ओर थी वो कलम-ए-स्याही,
में सफ़ेद और वो काफी रंगो की मोहताज थी,
में कंटक था ओर थी वो फूल गुलाब का,
में चुभता लोगो को ओर वो सबके मनको भाती थी,
में आशिक था ओर वो रुह आशिको की,
अब और क्या कहुं यारों,
ये तो हिंदु-मुस्लिम की कहानी थी
Written By Shubham Dave
Waah kya baat hai!!!
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