Alfaaz-E-Zindgi
Alfaaz-E-Zindgi
जींदगी महज शब्दों की मेहताब नहीं होती,
दर्दों की कशीश कभी पुरानी नहीं होती,
रोज तो नहीं देती ये जींदगी दर्द हमको,
कभी कभी वो सुख की मोहताज नहीं होती,
हर रोज शरीक होता हूं तेरे जनाजे पर ए जींदगी,
और एक तू है कि कभी मुजे सलाम नहीं करती
सलाम और दुआ ही मेरे साथी है अब तो,
ये जिल्लत भरी जींदगी अब बरदाश नहीं होती,
दिलाऊं क्या यकीन अपनी अहद-ए-वफा का ए जींदगी,
पता है मुजे, तु हर रोज बेवफा भी नहीं होती
तु नहीं तो मौत ही सही, लेकिन गले जरुर लगा लूंगा,
तन्हाईयाँ कभी साथ होती है, तो कभी साथ नहीं होती
क्या शिकवा करे तुजसे अब ए जींदगी,
युं हर रोज तु सब पर महेरबान नहीं होती
ख्तम हो गए मेरे शब्द अब तो,
एक तु है कि सुनने तक का नाम नहीं लेती
Written by
Shubham dave
शब्दों का मोल ़यादों से कम नहीं होता,
फासलो से कभी प्यार कम नहीं होता,
नहीं होता कोई अपना ईस ज़माने में,
हमारे जनाजे पर कोई शरीक नहीं होता
Written By Shubham Dave
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