Alfaaz-E-Nazm - Ek Tanha Shayar

Alfaaz-E-Nazm - Ek Tanha Shayar


अपना होता है,

अपना धर अपना होता है,
जहाँ हर सपना सच होता है,

बाप की वो लगाई गई डाँंट,
जिससे, जिवन में उजाला होता है,

और माँ का वो दिया हुआ प्यार,
सिर्फ चंद लोगो को मुकम्मल होता है,

दु:ख तो बहुत आते है जींदगी में लेकिन,
हमारे हर दु:ख में परिवार का साथ होता है,

गिले, शिकवे और कभी जगडे तो हो ही जाते है,लेकिन, अपना घर आखिर अपना होता है,

पूछो जाकर उनसे जो रहते है यतीमखाने में,
जिनको घर तक नसीब नहीं होता है,

बनता है नाम मश्कत-ओ-महेनत के बाद,
दो वक्त की रोटी के लिए ना कोई इंसान होता है,

जाए कहीं घुमने बाहर, तब भी सूकून नहीं मिलता,
क्योंकि, घर का माहोल ही कुछ अलग होता है,

घर तो बडी अनोखी चीज है यारों,
जींदगी शुरु भी वहीं और वहीं जनाजा मुकम्मल होता है,

कभी ना करना धोखा परिवारवालों से क्योंकि,
सब घर से शुरु और घर पर ही ख्तम होता है,

लिखने जाए तो अल्फाज भी कम पड जाए,
आखिर हमारा घर सिर्फ हमारा ही होता है,

                            Written By
                                             -Shubham Dave

किताबों के बीच मैं हर वक्त रहता हूं,
बिखरे से अल्फाजों में, उलजा सा रहता हूं,

नहीं हूं मैं कोई मिर-ए-गालिब, राहत-ओ-फ़राज़,
फक्त कायल करने वाले कुछ शब्द लिखता हूं साहब,

नूर-ए-हुस्न का जोर नहीं चलता कभी मुज पर,
मैं वो हूं साहब, जो लहु से अल्फाज लिखता हूं,

अब लिखने की तो आदत सी हो गई है मेरी रोज की,
शायर हूं साहब, कलम से मैं कुछ राज़ लिखता हूं,

दिल के घाव भी जल जाते है कलम से मेरी,
मैं वो हूं, जो शजर-ए-दिल के जज्बात लिखता हूं,

कुछ इस कदर मैं खुली किताब के मानिंद हूं ,
मैं कलम से शुरु और शब्दों से घायल रहता हूं

                      Written By
                                 -Shubham Dave

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